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रतन टाटा के जाने के बाद टाटा ग्रुप में बदलाव और विवाद: सरकार तक पहुंचा मामला, आज पहली डेथ एनिवर्सरी

Kapil Sharma
By Kapil Sharma
Oct 09, 2025, 11:11 AM IST

रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि: एक साल में बहुत कुछ बदल गया रतन टाटा की आज पहली डेथ एनिवर्सरी है। 9 अक्टूबर 2024 को 86 वर्ष की उम्र में उनके निधन के बाद, टाटा ग्रुप में कई बड़े बदलाव देखने को मिले। उनकी जगह नई लीडरशिप आई, रणनीतियां बदलीं, और...

रतन टाटा के जाने के बाद टाटा ग्रुप में बदलाव और विवाद

रतन टाटा की पहली पुण्यतिथि: एक साल में बहुत कुछ बदल गया

रतन टाटा की आज पहली डेथ एनिवर्सरी है। 9 अक्टूबर 2024 को 86 वर्ष की उम्र में उनके निधन के बाद, टाटा ग्रुप में कई बड़े बदलाव देखने को मिले। उनकी जगह नई लीडरशिप आई, रणनीतियां बदलीं, और साथ ही ग्रुप के भीतर कुछ विवाद भी उभरकर सामने आए।

रतन टाटा को भारत में केवल एक उद्योगपति नहीं बल्कि एक विजनरी लीडर के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनके जाने के बाद समूह के भीतर उत्तराधिकार, ट्रस्ट प्रबंधन और कंपनियों की दिशा को लेकर कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए।


1. नोएल टाटा बने नए चेयरमैन, 13 साल बाद परिवार की वापसी

रतन टाटा के निधन के बाद अक्टूबर 2024 में उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट्स का चेयरमैन नियुक्त किया गया। यह ट्रस्ट टाटा ग्रुप के लगभग 65% शेयरों को नियंत्रित करता है। इसके तुरंत बाद, नवंबर 2024 में नोएल को टाटा संस के बोर्ड में भी शामिल किया गया — जो ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है और टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, TCS जैसी प्रमुख कंपनियों का संचालन करती है।

यह 2011 के बाद पहली बार हुआ जब टाटा परिवार का कोई सदस्य दोनों प्रमुख बोर्डों में शामिल हुआ। इससे यह संकेत मिला कि अब ग्रुप की रणनीति और भविष्य की दिशा तय करने में परिवार की भूमिका दोबारा मजबूत हो रही है।

नोएल टाटा पहले से ही टाटा ग्रुप की रिटेल कंपनी ट्रेंट लिमिटेड (जिसके तहत वेस्टसाइड और जारा जैसे ब्रांड्स आते हैं) के चेयरमैन हैं। वे नवल टाटा और उनकी दूसरी पत्नी सिमोन के बेटे हैं।


2. टाटा ट्रस्ट्स में उठा विवाद, सरकार को देना पड़ा ध्यान

नोएल टाटा की नियुक्ति के बाद टाटा ट्रस्ट्स में मतभेद की खबरें आने लगीं। कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नोएल की नियुक्ति सर्वसम्मति से नहीं हुई थी। ट्रस्ट के भीतर एक गुट — जिसमें मेहली मिस्त्री जैसे पुराने और प्रभावशाली सदस्य शामिल हैं — अब नोएल और टाटा सन्स के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन के निर्णयों में सीधा दखल चाहता है।

इस मतभेद का असर टाटा सन्स के बोर्ड पर भी पड़ा, जहां कुछ नॉमिनी डायरेक्टर्स के रिटायर होने से नई नियुक्तियों पर सहमति नहीं बन पाई। यहां तक कि उदय कोटक जैसे बड़े नामों को भी अस्वीकृति झेलनी पड़ी।
यह विवाद धीरे-धीरे इतना बढ़ा कि सरकार को भी स्थिति पर ध्यान देना पड़ा। उद्योग मंत्रालय ने ट्रस्ट प्रबंधन और कॉर्पोरेट गवर्नेंस की पारदर्शिता को लेकर रिपोर्ट मांगी है।


3. शांतनु नायडू को मिली अहम भूमिका, अब टाटा मोटर्स में नई जिम्मेदारी

रतन टाटा के निधन के बाद जिन नामों पर सबसे ज्यादा चर्चा हुई, उनमें शांतनु नायडू प्रमुख हैं। रतन टाटा ने अपनी 10,000 करोड़ की वसीयत में शांतनु को भी हिस्सेदारी दी थी। शांतनु पहले रतन टाटा के एक्जीक्यूटिव असिस्टेंट और करीबी दोस्त रहे हैं।

फरवरी 2025 में उन्हें टाटा मोटर्स का जनरल मैनेजर (हेड ऑफ स्ट्रैटेजिक इनिशिएटिव्स) बनाया गया। वे अब कंपनी के इलेक्ट्रिक व्हीकल इनोवेशन प्रोजेक्ट्स का नेतृत्व कर रहे हैं।

शांतनु का सफर काफी प्रेरक है। उन्होंने टाटा एल्क्सी में काम करते हुए ‘मोटोपॉज’ नाम से एक प्रोजेक्ट शुरू किया, जो सड़कों पर आवारा कुत्तों की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। इस आइडिया से प्रभावित होकर रतन टाटा ने उन्हें मुंबई बुलाया और दोनों के बीच एक गहरा रिश्ता बना।


4. नई पीढ़ी को सौंपी जा रही है जिम्मेदारी

नोएल टाटा की तीनों संतानें — माया टाटा (36), लिआह टाटा (39) और नेविल टाटा (32) — अब सक्रिय रूप से ग्रुप से जुड़ रही हैं। जनवरी 2025 में इन्हें सर रतन टाटा इंडस्ट्रियल इंस्टीट्यूट (SRTII) के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज में शामिल किया गया।

यह संस्थान महिलाओं को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग देता है और इसे 1928 में नवजबाई टाटा, रतन टाटा की दादी ने स्थापित किया था। यह नियुक्ति ग्रुप की “नेक्स्ट जनरेशन लीडरशिप स्ट्रेटेजी” का हिस्सा मानी जा रही है।


5. टाटा ग्रुप में चार बड़े स्ट्रक्चरल बदलाव

रतन टाटा के निधन के बाद टाटा ग्रुप में कई अहम परिवर्तन हुए —

  • टाटा ट्रस्ट्स और टाटा सन्स के नेतृत्व का पुनर्गठन
  • नई पीढ़ी का बोर्ड में प्रवेश
  • कॉर्पोरेट गवर्नेंस सिस्टम की समीक्षा
  • सरकार की ओर से ट्रस्ट प्रबंधन पर नजर

इन सभी बदलावों का असर अब ग्रुप की नीतियों और कारोबारी दिशा पर दिखाई देने लगा है।


निष्कर्ष

रतन टाटा का जाना केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि एक युग का अंत था। उनके बाद टाटा ग्रुप एक नए दौर में प्रवेश कर चुका है, जहां नई लीडरशिप, पारिवारिक हिस्सेदारी, और व्यावसायिक दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव दिख रहा है।

हालांकि समूह अब भी अपनी “ट्रस्ट और वैल्यू बेस्ड एथिक्स” के लिए जाना जाता है, लेकिन आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि नोएल टाटा और उनकी अगली पीढ़ी रतन टाटा की विरासत को किस तरह आगे बढ़ाती है।

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